क्या अंपायर कॉल रूल बदलने की जरूरत है? क्रिकेट जगत में डीआरएस के इस बिंदु पर फिर बहस गरमा रही है — और अब सचिन तेंदुलकर की आवाज भी इसमें गूंज रही है।
क्रिकेट में डीआरएस (Decision Review System) ने तोड़-मरोड़ कर फ़ैसलों को तकनीक-संबंधी निष्पक्षता दी है। लेकिन एक नियम जो किसी विवाद के केंद्र में बार-बार आता है, वह है अंपायर कॉल रूल। क्या अंपायर कॉल रूल बदलने की जरूरत है? जब इस नियम पर सवाल उठता है, तो खेल की पहचान बदलने का समय खुद-ब-खुद बुला उठता है।
डीआरएस और ‘अंपायर कॉल’ का मूल सिद्धांत
डीआरएस की नींव तीन तकनीकी घटकों पर टिकी है:
गेंद कहाँ गिरी (Pitching)
पैड पर गेंद कहाँ लगी (Impact)
क्या वह विकेट को टकरा रही थी (Wickets)
‘अंपायर कॉल’ तब लागू होता है जब तकनीकी प्रमाण स्पष्ट नहीं होते, जैसे कि गेंद का 50% से कम हिस्सा स्टंप्स को हिट कर रहा हो—इस स्थिति में ऑन-फील्ड अंपायर का निर्णय ही अंतिम हो जाता है, और टीम को अपना रिव्यू गंवाना नहीं पड़ता।
क्यों बन गया विवाद का केन्द्र-बिंदु?
ज्ञान की खाई: तकनीक पर भरोसा बढ़ा है, लेकिन गलन-गलत फैसलों के बीच यह नियम विवाद को बढ़ाता है क्योंकि “50% से कम, लेकिन रीव्यू” जैसी स्थिति जटिलता को बढ़ाती है।
अस्पष्टता और मार्जिन ऑफ एरर: तकनीक की त्रुटि का मार्जिन ± 5 mm से लेकर ± 10 mm तक माना जाता है; लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि किस स्थिति में निर्णय कैसे लिया जाए।
खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया: कई बार DRS लेने के बावजूद अंपायर कॉल रूल पास रेफरल देकर फैसले को उलटने से रोक देता है—यह द्राव्य खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों में निराशा जन्म देता है।
सचिन तेंदुलकर ने फिर उठाया मुद्दा
हाल ही में Reddit के AMA सेशन में सचिन ने कहा:
“Players have chosen to go upstairs because they were unhappy with the on-field umpire’s call. Hence there should be no option to go back to that call… Technology even when inaccurate will be consistently inaccurate.”
उनका तर्क है कि यदि खिलाड़ी डीआरएस का सहारा लेते हैं तो फ़ैसला तकनीक द्वारा ही लिया जाना चाहिए — “टेनिस की तरह: या तो इन, या आउट।” यह तर्क 2020 में ब्रायन लारा से उनकी बातचीत का भी हिस्सा था।
अन्य दिग्गजों की राय
शेन वॉर्न:
“If a captain reviews a decision—then the on field umpire’s decision should be removed—as you can’t have the same ball being out or not out!”
I’m going to keep banging on about this. If a captain reviews a decision-then the on field umpires decision should be removed-as you can’t have the same ball being out or not out ! Once this happens, it’s simple and clear-whether it should be out or not! @BCCI@ICC@HomeOfCricket
हरभजन सिंह और मिस्बाह-उल-हक भी समय-समय पर ट्वीट और इंटरव्यू में यही बात उठा चुके हैं।
Bad umpiring and bad rules cost Pakistan this game.. @ICC should change this rule .. if the ball is hitting the stump that’s out whether umpire gave out or not out doesn’t matter.. otherwise what is the use of technology??? @TheRealPCB vs #SouthAfrica#worldcup
डीआरएस की शुरुआत 2008 में श्रीलंका दौरे पर हुई, जिसे बाद में टेस्ट, वनडे और टी20 में अपनाया गया । इसने खेल को अधिक निष्पक्ष बनाने में मदद की, लेकिन ‘अंपायर कॉल’ नियम तकनीक और मानवीय निर्णय के बीच एक जटिल पुल है, जो अक्सर विवाद का विषय बनता है।
क्या बदलाव संभव हैं?
पूर्ण तकनीकी नियंत्रित फैसले: जैसे टेनिस में होता है—समय आने पर निर्णय केवल तकनीक पर आधारित हो।
मार्जिन को साफ परिभाषित करना: 50% की बजाय और कठोर सीमा तय की जाए, ताकि निर्णय स्पष्ट हो—“50% से कम = मिस, 50% से अधिक = आउट।”
दृष्टांत और उदाहरणों पर विचार: पिछले विवादित मैचों से सीख लेकर नए नियम तैयार किए जा सकते हैं।
संभावित जोखिम और बचाव
तकनीक 100% सही नहीं होती—लेकिन जैसा सचिन ने कहा, “एक जैसी गलतियां” से बेहतर निष्पक्षता मिल सकती है ।
मानवीय निर्णय की भूमिका पूरी तरह समाप्त कर देना—कुछ पारंपरिकists इसे खेल की आत्मा के विरुद्ध मानते हैं।
निष्कर्ष
क्रिकेट में ‘अंपायर कॉल रूल बदलने की जरूरत’ की बहस अब सिर्फ तकनीक और नियम का सवाल नहीं है; यह खेल की न्यायप्रियता और निष्पक्षता का प्रश्न है। जब दिग्गज खिलाड़ी और खेल के भगवान सचिन तेंदुलकर जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व इसे मुद्दा बनाते हैं, तो आईसीसी को इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। समय आ गया है कि यह नियम फिर से नए सिरे से परखा जाए—क्या तकनीकी निर्भरता बढ़ानी है, या मानवीय निर्णय में स्थान बनाए रखना है—यह एक महत्वपूर्ण और निर्णायक सवाल बन चुका है।