तीन माह में 242 बच्चे हिंसा का शिकार— घरेलू हिंसा, यौन शोषण और बाल श्रम बेकाबू

तीन माह में 242 बच्चे हिंसा का शिकार— घरेलू हिंसा, यौन शोषण और बाल श्रम बेकाबू
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Karnal (Sanjay Sharma) – 6 जून, 2025

कोरोनावायरस के समापन के बाद बच्चों पर बढ़ती हिंसा और अपराध की घटनाओं ने जिला प्रशासन को चिंता में डाल दिया है। सिर्फ पिछले तीन माह में 242 बच्चे विभिन्न प्रकार की हिंसा का शिकार बनकर पुनः सुरक्षित स्थानों पर लाए गए। इनमें घरेलू हिंसा, यौन शोषण, बाल श्रम, बाल विवाह, भीख मांगना, गुमशुदगी और मानसिक उपेक्षा जैसे गम्भीर आरोप शामिल हैं।

📊 आंकड़े: बाल कल्याण समिति की रिपोर्ट

बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार:

  • 54 बच्चे घर से भागे पाए गए
  • 11 यौन शोषण/POCSO मामलों में शामिल
  • 42 बाल श्रमिक (बाल मजदूरी)
  • 29 भीख मांगने वाले
  • 3 बाल विवाह के मामले
  • 8 गुमशुदा लड़के-लड़कियां
  • 5 अनाथ बच्चे
  • 7 अन्य हिंसा की शिकार
  • 47 अकेले फंसे पाए गए
  • 5 अन्य कारणों से रेस्क्यू

घर की दीवारों के भीतर: घरेलू हिंसा की कड़वी सच्चाई

घरेलू हिंसा में बच्चों को घर में मारपीट, गाली-गलौज, मानसिक प्रताड़ना और उपेक्षा की घटनाओं से गुजरना पड़ता है। अक्सर माता-पिता के झगड़े का सीधा असर बच्चों की सेहत व मानसिक स्थिति पर पड़ता है। बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष, श्री उमेश चानना के अनुसार, “जब पैरेंट्स खुद तनावपूर्ण माहौल में होते हैं और बच्चों की नींव ही कमजोर होती है, तो बच्चे में आत्मसम्मान टूटता है और वह भावनात्मक तौर पर कमजोर पड़ता है। उन्हें प्यार, सुरक्षा और सम्मानजनक वातावरण देना नितांत आवश्यक है।” childlineindia.org

यौन प्रताड़ना: जान-पहचान वाले आरोपी

यौन उत्पीड़न की स्थितियों में आरोपित अक्सर बच्चे के ही परिचित पाए गए। इससे जोखिम का दायरा न केवल बढ़ता है, बल्कि परिवार की आंतरिक संरचना पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा होता है। कई बच्चे टैबू तोड़कर बाहर लड़खड़ा रहे हैं।

मानसिक क्षति और भागने की प्रवृत्ति

बाल मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. हवा सिंह का कहना है, कि बच्चों पर अत्यधिक मानसिक दबाव बढ़ा है। नाबालिग बच्चे हिंसा या प्रताड़ना की स्थिति में माता-पिता को कुछ बताने से डरते हैं, जिससे वे चुप्पी साध लेते हैं। धीरे-धीरे यह चुप्पी उनके लिए भय और घुटन बन जाती है और अंततः वे परिवार और समाज की चक्की में फंसते नजर आते हैं।

प्रशासन की क्या भूमिका?

  • बाल कल्याण समिति: बच्चों के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रही है।
  • बाल मनोरोग विशेषज्ञों का समर्थन संकटग्रस्त बच्चों की मानसिक सेवा में महत्वपूर्ण है।
  • पुलिस और समाज सुधार संस्थाएँ घर से भागे बच्चों को जागरूक करने और सुरक्षित परिवेश बनाने में शामिल हो रही हैं।
  • आंगनवाड़ी व स्वास्थ्य विभाग, पोषण और सेहत जांच कर कुपोषित बच्चों पर निगरानी रख रहे हैं tribuneindia.com

आगे की चुनौतियाँ

  1. पारिवारिक जिम्मेदारी: माता-पिता को अपने तनाव को नियंत्रित करना होगा और बच्चों को सुरक्षित माहौल देना होगा।
  2. शिक्षा व जागरूकता: स्कूलों और संगठनों को बच्चों को ‘गुड टच-बैड टच’ कैम्प चलाकर शिक्षित करने की सख्त जरूरत है।
  3. समाजिक सहयोग: पड़ोसियों, शिक्षकों, चाइल्ड हेल्पलाइन और NGO की भागीदारी ज़रूरी है।
  4. मनोवैज्ञानिक समर्थन: ट्रॉमा से गुज़र चुके बच्चों के लिए फ्री काउंसलिंग सेंटर और बाल प्रेम आधारित वातावरण बनाना बेहद ज़रूरी है।

👤 निष्कर्ष

बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाते हुए, हर नागरिक और संस्था को बच्चों के अधिकारों की रक्षा की बात कही जाती है। लेकिन जब तक घर-परिवार, समाज और प्रशासन मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक हिंसा से उत्पन्न यह त्रासदियाँ नहीं रुकेंगी। ये 242 सिर्फ़ आंकड़े नहीं, बल्कि हर किसी की संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की पुकार है।

इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि संकट सिर्फ बच्चों का नहीं, हमारे जिम्मेदार नागरिक ढांचे का भी है।

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