लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद, आज दिल्ली में NDA की संसदीय बोर्ड की बैठक आयोजित हो रही है। यह बैठक न केवल केंद्र की आगामी सरकार के लिए बल्कि उत्तर प्रदेश के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। केंद्र सरकार में सहयोगी दलों की महत्वपूर्ण मंत्रालयों की मांग ने यूपी की हिस्सेदारी को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। यूपी में NDA के सात केंद्रीय मंत्रियों की हार के बाद, यह संभावना जताई जा रही है कि उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व केंद्र सरकार में घट सकता है।
प्रमुख मंत्री चुनाव हार गए, नई रेस में कौन?
उत्तर प्रदेश के बीजेपी नेताओं का प्रदर्शन इस बार औसत से भी कम रहा। बीजेपी के सात केंद्रीय मंत्री चुनाव हार गए हैं, जिनमें महेंद्र नाथ पांडे, स्मृति ईरानी, अजय मिश्रा टेनी, संजीव बालियान, साध्वी निरंजन ज्योति, भानु प्रताप वर्मा, और कौशल किशोर शामिल हैं। इन नेताओं को न केवल अपने क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा बल्कि इनके प्रदर्शन की रिपोर्ट भी अच्छी नहीं आई। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, एसपी सिंह बघेल, और पंकज चौधरी जैसे नेता सफल रहे हैं।
जयंत चौधरी की मंत्री पद की संभावना
2019 के मुकाबले, इस बार यूपी ने दिल्ली में मोदी सरकार बनाने में उतनी बड़ी भूमिका नहीं निभाई। तब बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर यूपी से 64 सीटें जीती थीं। इस बार यह आंकड़ा घटकर 36 (बीजेपी 33, आरएलडी 2, अपना दल 1) पर सिमट गया है। ऐसे में, यह तय है कि यूपी से मंत्रियों की संख्या कम होगी। हालांकि, अनुप्रिया पटेल का तीसरी बार मंत्री बनना लगभग तय है और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी भी मंत्री पद की रेस में शामिल हो सकते हैं।
जातीय समीकरण का महत्व
यूपी में जातीय समीकरण को साधना भी आवश्यक है। जो मंत्री चुनाव नहीं जीत पाए हैं, उनकी जगह उनकी जाति के दूसरे सांसदों को मंत्री बनाया जा सकता है। राजनीतिक दृष्टि से यूपी की कई जातियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। महेंद्रनाथ पांडे और अजय मिश्रा टेनी ब्राह्मण चेहरा थे। ऐसे में एक ब्राह्मण मंत्री यूपी से होना तय माना जा रहा है। योगी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद को मौका मिल सकता है। इसके अलावा राज्यसभा सांसद और पूर्व डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा या पूर्व मंत्री महेश शर्मा को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। तेज़तर्रार छवि वाले लक्ष्मीकांत वाजपेयी का नाम भी इस लिस्ट में शामिल हो सकता है।
दलित और ओबीसी चेहरों का समावेश
अखिलेश यादव के PDA नारे और लोकसभा जीत में दलित प्रत्याशियों की अहम भूमिका को देखते हुए, यूपी से कम से कम दो दलित समाज के मंत्री बनाए जा सकते हैं। एसपी सिंह बघेल के अनुभव को देखते हुए उन्हें मौका मिल सकता है। अनूप वाल्मीकि को भी जगह मिल सकती है। इस बार के चुनाव में बसपा का बेस वोट समाजवादी पार्टी में शिफ्ट होने के संकेत मिले हैं। मंत्रिमंडल में यूपी से दलित समुदाय के दो मंत्री बनाए जा सकते हैं। ओबीसी फैक्टर का चुनाव पर असर पड़ा है और इसे ध्यान में रखते हुए भोला सिंह, पंकज चौधरी, और छत्रपाल गंगवार में से किसी को मंत्री बनाया जा सकता है।
अनुप्रिया पटेल को फिर मिल सकता है मौका
कुर्मी वोटरों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाए जाने की संभावना है। पिछली सरकार में महिला मंत्रियों में स्मृति ईरानी, साध्वी निरंजन ज्योति और अनुप्रिया पटेल शामिल थीं। इस बार केवल दो महिलाएं बीजेपी से चुनकर संसद पहुंची हैं। अनुप्रिया पटेल के अलावा, हेमा मालिनी भी मंत्री बनने की दौड़ में हैं। युवा चेहरे के तौर पर शाहजहांपुर से जीतकर आए अरुण सागर को भी जगह मिल सकती है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी केंद्र की मोदी सरकार में घट सकती है, लेकिन जातीय समीकरण और सहयोगी दलों की मांग को ध्यान में रखते हुए नई मंत्रियों की नियुक्ति होगी। इस बार के मंत्रिमंडल में कई नए चेहरे देखे जा सकते हैं जो यूपी की राजनीतिक स्थिति और जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर चुने जाएंगे।