“अश्लील वीडियो मामले में नाबालिग लड़के को सुप्रीम कोर्ट से बेल नहीं, पीड़िता ने की थी आत्महत्या”

"अश्लील वीडियो मामले में नाबालिग लड़के को सुप्रीम कोर्ट से बेल नहीं, पीड़िता ने की थी आत्महत्या"
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तराखंड के एक लड़के को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर अपनी सहपाठी का अश्लील वीडियो बनाने और फिर उसे प्रसारित करने का आरोप है, जिसके कारण युवती ने आत्महत्या कर ली थी। न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की वेकेशन बेंच ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मामले में लड़के को जमानत देने से इनकार किया गया था। हरिद्वार जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) और उत्तराखंड उच्च न्यायालय से जमानत खारिज होने के बाद, लड़के की मां ने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

लड़के पर आईपीसी की धारा 305 और 509 तथा पोक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत मामला दर्ज किया गया था। यह फैसला पुणे हिट एंड रन केस के बीच आया है, जहां जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने एक नाबालिग लड़के को जमानत दे दी, जिसने अपनी गाड़ी से बाइक सवार दो युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स को टक्कर मार दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी।

लड़की ने कर ली थी आत्महत्या

सीनियर वकील लोक पाल सिंह ने शीर्ष अदालत में दलील दी थी कि बच्चे के माता-पिता उसकी देखभाल करने के लिए तैयार हैं और उसे बाल सुधार गृह में न भेजकर उसकी हिरासत मां को दी जानी चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद, इस स्तर पर हम उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।” लड़की पिछले साल 22 अक्टूबर को अपने आवास से लापता हो गई थी और बाद में उसका शव बरामद हुआ था।

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया था

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक लड़के को ‘गैर अनुशासित’ बताते हुए उसे जमानत देने से इनकार कर दिया है। जज न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने 1 अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के लिए हर अपराध जमानती होता है और वे बाल अपराधी (CICL) के रूप में जमानत के हकदार होते हैं, चाहे अपराध जमानती हो या गैर-जमानती। हालांकि, अगर रिहाई से बच्चे को किसी अपराधी की संगति में लाने, नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने, या न्याय के उद्देश्य विफल करने की संभावना हो, तो जमानत से इनकार किया जा सकता है।

उच्च न्यायालय ने सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट, और स्कूल रिपोर्ट पर विचार करते हुए अपने आदेश में कहा कि बच्चे को जमानत न देना उसके सर्वोत्तम हित में होगा। रिपोर्ट के अनुसार, वह एक अनुशासनहीन बच्चा है जो बुरी संगत में पड़ गया है और उसे सख्त अनुशासन की आवश्यकता है। रिहा होने पर उसके साथ और भी अप्रिय घटनाएं हो सकती हैं, जिससे न्याय के उद्देश्य पराजित होंगे।

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