नई सरकार के गठन के साथ ही राजनीति के गलियारों में विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी राज्य (Special Category Status) की चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है। जनता दल यूनाइटेड (JDU) और तेलगुदेशम (TDP) जैसे एनडीए के घटक दलों ने विशेष राज्य का दर्जा मांगा है। यह लेख आपको इन दोनों Terms के बारे में विस्तार से बताएगा और समझाएगा कि यह कैसे राज्यों और उनकी जनता को लाभ पहुंचाता है।
विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (Special Category Status – SCS) क्या है?
विशेष श्रेणी का दर्जा किसी पिछड़े राज्य को उनकी विकास दर के आधार पर दिया जाता है। अगर कोई राज्य भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है, तो उसे कर और शुल्क में विशेष छूट देने के लिए यह दर्जा दिया जाता है। यह दर्जा संविधान में किसी प्रावधान के तहत नहीं दिया गया है, बल्कि 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर इसे लागू किया गया था।
विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा कैसे दिया जाता है?
किसी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने के लिए कुछ शर्तें होती हैं। इनमें पहाड़ी राज्य, कम जनसंख्या घनत्व, जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक महत्व, आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ापन, और वित्त की अव्यवहार्यता शामिल हैं।
विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिलने के फायदे
विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिलने पर केंद्र सरकार उस राज्य को केंद्र प्रायोजित योजनाएं लागू करने के लिए 90 प्रतिशत धनराशि देती है, जबकि अन्य राज्यों के लिए यह 60 या 75 प्रतिशत होती है। शेष धनराशि राज्य सरकार द्वारा खर्च की जाती है। अगर आबंटित धनराशि खर्च नहीं होती, तो वह समाप्त नहीं होती बल्कि अगले वर्ष के लिए कैरी फॉरवर्ड हो जाती है। इसके अलावा, राज्य को सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर में भी महत्वपूर्ण रियायतें मिलती हैं।
1969 में किन राज्यों को मिला विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा?
1969 में इस प्रावधान से पहले जम्मू और कश्मीर को विशिष्ट दर्जा मिला था। हालांकि, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अब वह एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। इसके बाद पूर्वोत्तर के असम और नगालैंड को 1969 में विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया था। बाद में हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को यह दर्जा प्राप्त हुआ।
विशेष श्रेणी राज्य और विशेष राज्य का दर्जा: क्या है अंतर?
विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी राज्य में अंतर है। विशेष राज्य का दर्जा विधायी और राजनीतिक अधिकारों को बढ़ाता है, जबकि विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
विशेष राज्य का दर्जा
विशेष राज्य का दर्जा एक राज्य को विधायी और राजनीतिक अधिकारों में बढ़ोतरी देता है। यह दर्जा किसी राज्य को आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में विशेष सहायता देने के लिए होता है।
नई सरकार और विशेष राज्य का दर्जा
नई सरकार के गठन के साथ ही विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी राज्य की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। एनडीए के घटक दलों में से जनता दल यूनाइटेड और तेलगुदेशम की विशेष दर्जे वाले राज्य की संभावित मांगों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है।
विशेष राज्य का दर्जा देने की प्रक्रिया
किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार की सहमति और संसद में विधेयक पारित करना आवश्यक है। यह दर्जा मिलने पर राज्य को कर और शुल्क में विशेष छूट मिलती है, साथ ही विकास के लिए विशेष आर्थिक सहायता भी दी जाती है।
विशेष राज्य का दर्जा मिलने के लाभ
विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर राज्य को विकास कार्यों के लिए विशेष आर्थिक सहायता मिलती है। कर और शुल्क में छूट मिलने से राज्य को आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है। इसके अलावा, राज्य को केंद्र प्रायोजित योजनाओं में भी विशेष प्राथमिकता मिलती है।
विशेष राज्य का दर्जा और SCS का भविष्य
वर्तमान सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी राज्य की मांगों को लेकर क्या कदम उठाए जाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों के बीच यह मुद्दा हमेशा चर्चा में रहेगा।
निष्कर्ष
विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी राज्य की अवधारणाएं राज्यों को आर्थिक और सामाजिक विकास में सहायता प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। नई सरकार के गठन के साथ ही इन मुद्दों पर ध्यान दिया जा रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे यह मुद्दे राज्यों के विकास में योगदान देंगे।