हवलदार हरविंदर: ड्यूटी पर सर्वोच्च बलिदान
देश की माटी के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले हवलदार हरविंदर का असम में ड्यूटी के दौरान निधन हो गया। भालौठ गांव के 35 वर्षीय वीर सपूत ने अपने जीवन को देश सेवा में समर्पित कर दिया था। शनिवार को असम में तैनात रहते हुए हुए इस अप्रत्याशित घटना ने हर किसी को स्तब्ध कर दिया।
उनकी वीरता और सेवा के किस्से उनके साथियों के बीच एक मिसाल हैं। साथी सैनिकों का कहना है कि हवलदार हरविंदर हमेशा अपनी ड्यूटी को सर्वोपरि मानते थे।
गांव पहुंचा पार्थिव शरीर, उमड़ा जनसैलाब
मंगलवार सुबह जब सेना की टुकड़ी शहीद हवलदार हरविंदर का पार्थिव शरीर लेकर उनके पैतृक गांव पहुंची, तो पूरा गांव गम और गर्व के मिश्रित भावों में डूब गया। तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर को देखकर हर आंख नम थी। परिवार के सदस्य अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रहे थे, लेकिन उनके चेहरे पर गर्व का भाव स्पष्ट था।
गांववासियों ने घर के मुख्य द्वार पर फूल और दीप जलाकर हवलदार हरविंदर के स्वागत की तैयारी की थी। जब उनके शव को घर लाया गया, तो “भारत माता की जय” और “हवलदार हरविंदर अमर रहें” के नारों से पूरा माहौल गूंज उठा।
सैनिक सम्मान के साथ अंतिम विदाई
शहीद हवलदार हरविंदर की अंतिम यात्रा को एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा गया। उनके पार्थिव शरीर को फूलों से सजे वाहन पर रखा गया, और गांव के सैकड़ों लोग उनके अंतिम दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े।
अंतिम संस्कार से पहले सेना की टुकड़ी ने उन्हें सलामी दी। अधिकारीगण और जवानों ने उनकी अंतिम यात्रा का नेतृत्व किया। शहीद की अंतिम यात्रा में हर वर्ग और उम्र के लोग शामिल हुए। गांव के बुजुर्गों ने इसे अपने जीवन की सबसे भावुक और गौरवपूर्ण घटना बताया।
परिवार की पीड़ा और गौरव
हवलदार हरविंदर के परिवार में उनके माता-पिता, पत्नी, और दो बच्चे हैं। उनके पिता ने गहरी वेदना व्यक्त करते हुए कहा, “मेरा बेटा देश के लिए मरा है, इससे बड़ा गर्व हमारे लिए कुछ नहीं।” उनकी पत्नी ने आंखों में आंसू और दिल में गर्व के साथ कहा, “मेरे पति ने देश के लिए जान दी, मैं भी अपने बच्चों को देश सेवा के लिए तैयार करूंगी।”
परिवार के सदस्यों ने हरविंदर की बचपन की बातों को याद करते हुए बताया कि वे हमेशा से देशभक्ति से ओत-प्रोत थे। सेना में जाना उनका सपना था और अपने देश के लिए जीवन अर्पित करना उनकी सबसे बड़ी चाहत थी।
गांव ने खोया अपना नायक
गांव भालौठ, जो हरियाणा की वीरभूमि के रूप में जाना जाता है, अपने इस वीर सपूत को खोकर शोक में डूबा है। लेकिन शहीद के योगदान ने गांव को गर्व करने का अवसर भी दिया है। गांववासियों ने शहीद हरविंदर के नाम पर एक स्मारक बनाने की मांग की है ताकि उनकी शौर्यगाथा हमेशा याद रहे।
साहस और संघर्ष की प्रेरणा: हरविंदर की शौर्यगाथा
शहीद हरविंदर का जीवन साहस और संघर्ष की मिसाल है। वे बचपन से ही देश सेवा का सपना देखते थे। उनके साथी सैनिकों ने बताया कि वे अपने विचारों और कर्तव्यों को लेकर हमेशा स्पष्ट और दृढ़ थे। उनका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा बन गया है।
एक प्रेरणा बनी उनकी शहादत
हवलदार हरविंदर की शहादत ने गांव और परिवार के युवाओं में देशभक्ति की नई ऊर्जा का संचार किया है। उनके बलिदान की कहानी अब गांव के बच्चों को सुनाई जाती है, ताकि वे भी उनके जैसे साहसी और निडर बनें।
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गांव ने दी अंतिम श्रद्धांजलि
गांववासियों ने शहीद हरविंदर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनका नाम हमेशा अमर रहेगा। लोग उनकी वीरता की कहानी आने वाली पीढ़ियों को सुनाएंगे। अंतिम संस्कार के बाद गांव में उनके सम्मान में एक सभा आयोजित की गई, जिसमें उनके योगदान को याद किया गया।
समापन
हवलदार हरविंदर की कहानी एक प्रेरणा है कि देश सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उनका बलिदान एक उदाहरण है कि कर्तव्य से बढ़कर कुछ नहीं। उनके अद्वितीय साहस और समर्पण को आने वाली पीढ़ियां हमेशा गर्व के साथ याद रखेंगी।