राहुल गांधी और कांग्रेस का गौतम अडानी के खिलाफ हालिया वीडियो, जिसमें पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने अडानी के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत का दावा किया है, ने एक नई बहस छेड़ दी है। अगर वाकई राहुल गांधी के पास पुख्ता सबूत हैं तो सवाल उठता है कि वे कानूनी रास्ता क्यों नहीं अपनाते? आइए जानते हैं इस पूरे प्रकरण के अहम पहलुओं को विस्तार से।
1. अडानी पर सबूत हैं, तो कोर्ट में क्यों नहीं जाते?
राहुल गांधी का कई साल से अडानी पर निशाना साधना अब उनके ताजा वीडियो में दिखाई दिया, जिसे पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने साझा किया। खेड़ा ने कहा कि उनके पास भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत हैं। अगर सबूत इतने मजबूत हैं, तो कांग्रेस कोर्ट या पुलिस का सहारा क्यों नहीं ले रही? जैसे आम आदमी पार्टी के खिलाफ किया गया था। अगर कांग्रेस की नीयत साफ है, तो उन्हें अडानी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए न कि केवल सार्वजनिक बयानबाजी। क्या पार्टी के लिए यह एक राजनीतिक हथियार है या उनके इरादे वाकई मजबूत हैं? शराब घोटाला मामले में कांग्रेस ने जांच एजेंसियों और कोर्ट का सहारा लेकर कार्रवाई की थी। अडानी के खिलाफ भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? क्या यह केवल बयानबाजी है या इसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ है?
2. सेबी के खिलाफ आरोप और राहुल का निवेश – क्या है असल मंशा?
राहुल गांधी अक्सर सेबी और अडानी के रिश्तों पर सवाल उठाते हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बावजूद, उन्होंने सेबी पर संदेह जताया। हालांकि, यही राहुल सेबी के अंतर्गत शेयर बाजार में करोड़ों रुपये निवेश कर मुनाफा भी कमा रहे हैं। उनके निवेश की कीमत समय के साथ बढ़ी है। यदि राहुल गांधी की बातों पर जनता यकीन करे, तो क्या उन्हें खुद सेबी पर आधारित निवेश से किनारा नहीं करना चाहिए? यह स्थिति उनके विरोधाभास को उजागर करती है, जिससे आम जनता का उनके इरादों पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यह स्थिति कांग्रेस के मतदाताओं में एक भ्रम पैदा करती है। अगर राहुल गांधी सच में सेबी और अडानी ग्रुप से परेशान हैं, तो उनके पास शेयर बाजार से अपना निवेश वापस लेने का विकल्प है, ताकि उनका संदेश स्पष्ट हो सके।
3. कांग्रेस के मुख्यमंत्री और अडानी फाउंडेशन – क्या डबल स्टैंडर्ड है?
तेलंगाना सरकार द्वारा अडानी फाउंडेशन से 100 करोड़ रुपये के दान को लेकर कांग्रेस पर सवाल उठ रहे हैं। यह दान कौशल विश्वविद्यालय के लिए है, जिससे राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ने की संभावना है। लेकिन भाजपा और बीआरएस के नेताओं ने कांग्रेस पर ‘डबल स्टैंडर्ड’ का आरोप लगाया है। यह पहली बार नहीं है जब अडानी ने कांग्रेस की सरकारों को समर्थन दिया हो। राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने भी अडानी के साथ 65 हजार करोड़ का निवेश समझौता किया था। इससे कांग्रेस के खिलाफ विरोधाभास का माहौल बनता है।
4. राहुल गांधी के अडानी विरोध पर आम जनता की उलझन
राहुल गांधी का अडानी के खिलाफ लगातार बयानबाजी उनके समर्थकों को सोचने पर मजबूर करती है। जहां एक ओर वे अडानी के भ्रष्टाचार पर सवाल उठाते हैं, वहीं उनकी पार्टी के नेताओं का समर्थन अडानी को मिलता है। तेलंगाना, राजस्थान, और कर्नाटक जैसे राज्यों में कांग्रेस सरकारों का अडानी के साथ कामकाज करना राहुल की ‘अडानी विरोध’ छवि को कमजोर कर रहा है। जनता अब सोचने लगी है कि क्या कांग्रेस का अडानी विरोध सचमुच है या केवल दिखावा?
5. क्या राहुल गांधी की रणनीति से कांग्रेस को मिलेगा चुनावी फायदा?
1989 में राजीव गांधी और 2014 में यूपीए सरकार का पतन भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण हुआ। लेकिन राहुल गांधी के पास अडानी के खिलाफ ठोस सबूत होने के बावजूद पार्टी केवल बयानबाजी तक सीमित है। अगर कांग्रेस वाकई में अडानी के खिलाफ ठोस कदम उठाती, तो जनता भी उनके साथ खड़ी हो सकती थी। बयानबाजी से ज्यादा जरूरी है कानूनी कार्यवाही और न्यायिक प्रक्रिया में सक्रियता। अन्यथा, कांग्रेस की ‘अडानी विरोध’ रणनीति सिर्फ राजनीतिक खेल के तौर पर ही देखी जाएगी।
6. ‘अडानी बचाओ सिंडिकेट’ का क्या है असल मकसद?
राहुल गांधी ने अपने वीडियो में “अडानी बचाओ सिंडिकेट” का जिक्र किया। उनका कहना है कि सरकार केवल अडानी जैसे कुछ लोगों को बढ़ावा देने का काम कर रही है। लेकिन यदि राहुल को अपने दावों पर पूरा विश्वास है, तो उन्हें कानूनी तरीके से भ्रष्टाचार को साबित करने का प्रयास करना चाहिए। ‘सिंडिकेट’ शब्द का उपयोग कर वे अपने समर्थकों को इस मुद्दे की गंभीरता से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वास्तविक कार्रवाई की कमी से उनके प्रयास केवल दिखावे की तरह प्रतीत हो रहे हैं।
7. सारांश: राहुल गांधी की नीयत पर शक और जनता की अपेक्षाएँ
राहुल गांधी के अडानी विरोध में दृढ़ता दिखती है, लेकिन उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को जनता के सामने असली बनाने के लिए कानूनी कार्यवाही जरूरी है। केवल आरोप लगाने से उनकी पार्टी को चुनावी फायदा नहीं मिलेगा। जनता ईमानदार नेतृत्व चाहती है, जो समस्याओं का समाधान दे, न कि केवल बयानबाजी करे।
निष्कर्ष
कांग्रेस का अडानी विरोध स्पष्ट संदेश देने में विफल हो रहा है। जहां एक तरफ राहुल गांधी अडानी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के नेता और राज्य सरकारें अडानी समूह के साथ संबंध बनाए रखती हैं। यह जनता के बीच एक नकारात्मक संदेश देता है और कांग्रेस के अडानी विरोध के प्रति लोगों के विश्वास को कमजोर करता है। राहुल गांधी के लिए यह जरूरी है कि वह अपने बयानों और पार्टी के कार्यों में एकरूपता लाएं और यदि उनके पास पुख्ता सबूत हैं तो कानूनी रास्ता अपनाकर जनता को स्पष्ट संदेश दें।