फरीदाबाद में साइबर ठगी का सनसनीखेज मामला
फरीदाबाद में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें 87 साल के रिटायर्ड बैंक अधिकारी को मनी लॉन्ड्रिंग का झूठा आरोप लगाकर साइबर ठगों ने 60 लाख रुपये ठग लिए। इस घटना ने साइबर अपराधों की नई गंभीरता और बुजुर्गों को निशाना बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर किया है। ठगों ने खुद को सरकारी अधिकारी बताकर और डिजिटल अरेस्ट का डर दिखाकर यह धोखाधड़ी की।
कैसे बुजुर्ग को बनाया गया शिकार?
साइबर ठगी की यह घटना 17 दिसंबर 2024 को शुरू हुई, जब फरीदाबाद के सेक्टर-9 में रहने वाले एक 87 वर्षीय बुजुर्ग, जो सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के रिटायर्ड मैनेजर हैं, को एक अनजान फोन कॉल मिला। कॉल करने वाले व्यक्ति ने खुद को ट्राई (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) का अधिकारी बताया और मुंबई पुलिस के सब-इंस्पेक्टर राहुल से बात करने को कहा।
इसके बाद बुजुर्ग से आकांक्षा अग्रवाल नामक एक महिला ने संपर्क किया, जिसने उन्हें बताया कि उनका नाम मनी लॉन्ड्रिंग के एक बड़े मामले में शामिल है। महिला ने डिजिटल अरेस्ट के नाम पर धमकी दी कि यदि उन्होंने सहयोग नहीं किया, तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाएगा। यही नहीं, उनकी पूरी संपत्ति जब्त करने की धमकी भी दी गई।
पांच दिनों तक चला ठगी का सिलसिला
साइबर ठगों ने बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर डराया और पांच दिनों तक उनकी वित्तीय जानकारी लेते रहे। इस दौरान उन्होंने पीड़ित के सेविंग अकाउंट और एफडी (फिक्स्ड डिपॉजिट) की सारी जानकारी ले ली। ठगों ने बुजुर्ग को किसी से बात न करने और जांच पूरी होने तक चुप रहने की धमकी दी।
डिजिटल अरेस्ट के डर और दबाव में आकर बुजुर्ग ने न तो किसी से संपर्क किया और न ही इस मामले की जानकारी दी। ठगों ने उनसे अलग-अलग खातों में 60 लाख रुपये ट्रांसफर करवा लिए। उन्होंने भरोसा दिलाया कि जांच के बाद यह राशि उन्हें लौटा दी जाएगी।
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कैसे की गई रकम की हेराफेरी?
पीड़ित ने शिकायत में बताया कि उनकी रकम आईडीएफसी फर्स्ट बैंक, वराछा शाखा, और इंडसइंड बैंक के विभिन्न खातों में ट्रांसफर की गई। ठगों ने आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट) के माध्यम से यह ट्रांजेक्शन किया। उन्होंने पूरी प्रक्रिया के दौरान बुजुर्ग को इतना डरा दिया था कि वह न तो पुलिस से संपर्क कर सके और न ही अपने परिजनों को जानकारी दे सके।
जब हुआ ठगी का एहसास
ठगी का एहसास होने पर बुजुर्ग ने हिम्मत जुटाकर फरीदाबाद साइबर पुलिस को इसकी सूचना दी। पुलिस ने उनकी शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर लिया है। हालांकि, अब तक ठगों का कोई सुराग नहीं मिल पाया है।
बुजुर्ग की वित्तीय पृष्ठभूमि
पीड़ित बैंक अधिकारी सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे और 27 साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे। उनका एक मोबाइल नंबर, जो पहले अंधेरी (मुंबई) के पते पर रजिस्टर्ड था, अब किसी और के पास चला गया है। ठगों ने इस जानकारी का फायदा उठाकर बुजुर्ग को निशाना बनाया।
ठगी का तरीका और साइबर अपराधों का नया चलन
यह मामला साइबर ठगों ने “डिजिटल अरेस्ट” द्वारा बुजुर्गों को निशाना बनाने के बढ़ते चलन को दर्शाता है। ठग पहले बुजुर्गों की व्यक्तिगत जानकारी जुटाते हैं और फिर सरकारी अधिकारी बनकर उन्हें डराते हैं।
इस घटना में ठगों ने “डिजिटल अरेस्ट” का डर दिखाकर बुजुर्ग को पूरी तरह से मानसिक दबाव में डाल दिया। उन्होंने उन्हें यह यकीन दिलाया कि उनकी संपत्ति जब्त हो जाएगी और उन्हें जेल भेजा जा सकता है।
पुलिस की कार्यवाही और चुनौतियां
फरीदाबाद साइबर पुलिस ने इस मामले में अज्ञात आरोपियों के खिलाफ “डिजिटल अरेस्ट” केस दर्ज कर लिया है। हालांकि, ठगों का पता लगाना आसान नहीं है। साइबर अपराधों में ठग अक्सर फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हैं और फर्जी खातों के माध्यम से रकम ट्रांसफर करते हैं।
डिजिटल सुरक्षा की जरूरत
यह घटना इस बात का संकेत है कि डिजिटल युग में सभी को सतर्क रहना चाहिए। खासकर बुजुर्गों को वित्तीय लेनदेन और अनजान फोन कॉल्स को लेकर जागरूक करना बेहद जरूरी है। पुलिस ने भी जनता से अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध कॉल को गंभीरता से लें और तुरंत पुलिस को सूचित करें।
निष्कर्ष
फरीदाबाद की इस घटना ने डिजिटल सुरक्षा की अनिवार्यता को फिर से उजागर किया है। साइबर ठगों के नए तरीके बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं। इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सतर्कता और जागरूकता ही सबसे बड़ा बचाव है।