किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफा उपचुनावों से पहले BJP के लिए रेड सिग्नल, यूपी-बिहार में भी सब ठीक नहीं

किरोणीलाल मीणा का इस्तीफा उपचुनावों से पहले BJP के लिए रेड सिग्नल, यूपी-बिहार में भी सब ठीक नहीं
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किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफा भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में असंतोष और गुटबाजी का बोलबाला है। यह असंतोष और गुटबाजी तब तक छुपी रही जब तक पार्टी का नेतृत्व मजबूत और लोकप्रिय था, लेकिन अब ये खुलकर सामने आ रहे हैं।

राजस्थान में इस्तीफा और राजनीतिक असंतोष

राजस्थान सरकार में कृषि और ग्रामीण मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी और खुद किरोड़ीलाल मीणा का कहना है कि उन्होंने वादा किया था कि अगर पूर्वी राजस्थान की 7 सीटों में से बीजेपी एक भी हारती है तो वह इस्तीफा दे देंगे। इन सात सीटों में से बीजेपी 4 सीटें हार गई, जिनमें दौसा, करौली-धौलपुर, टोंक-सवाई माधोपुर और भरतपुर सीट शामिल हैं।

हालांकि, राजस्थान की राजनीति को समझने वाले हर शख्स जानते हैं कि यह सिर्फ एक बहाना है और निशाना कहीं और है। दरअसल, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से किरोड़ीलाल मीणा के संबंध खराब हो गए थे। मंत्रिमंडल में मनपसंद विभाग न मिलने के चलते वे पहले से ही नाराज थे।

इस्तीफे का समय और उपचुनावों पर प्रभाव

किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफा ऐसे समय आया है जब प्रदेश में कुछ ऐसी सीटों पर उपचुनाव होने हैं जहां उनका न होना पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकता है। बीजेपी के लिए इस समय एक-एक जीत निर्णायक है और पार्टी किसी भी शर्त पर एक और हार बर्दाश्त नहीं कर सकती है।

पार्टी में असंतोष का विस्तार

मीणा का इस्तीफा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई अन्य असंतुष्टों के लिए भी रास्ता खोल सकता है। अब तक हर राज्य में पार्टी में असंतोष होने के बावजूद मामला इस हद तक नहीं जाता था कि इस्तीफा देने की नौबत आए। जब पार्टी और नेता मजबूत होते हैं, तो हर तरह की गुटबंदी और कलह दब जाती है।

मीणा का नाराजगी

मीणा मंत्रिमंडल के गठन के बाद से ही नाराज चल रहे थे। वे ग्रामीण विकास मंत्रालय से पंचायती राज और कृषि मंत्रालय से कृषि विपणन काटकर मंत्री बनाए जाने के चलते पहले दिन से ही ख़फा थे। इससे पहले अपने भाई जगमोहन मीणा को दौसा लोकसभा सीट से टिकट दिलवाने में भी वे असफल रहे थे।

उपचुनावों का असर

राजस्थान के 5 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं – देवली-उनियारा, दौसा, खींवसर, चौरासी, और झुंझुनूं। किरोड़ी लाल मीणा बीजेपी में मीणा समुदाय के बड़े नेता हैं और उनके इस्तीफे से मीणा समुदाय के वोटर्स पर असर पड़ सकता है। मीणा को लेकर जो सबसे बड़ी बात सामने आ रही है वो यह है कि दिल्ली में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें मिलने का समय दिया था, इसके बावजूद मीणा की किसी से मुलाकात नहीं हुई। पूर्वी राजस्थान के किरोड़ी लाल मीणा दिग्गज नेता हैं और कई जिलों में उनका सीधा प्रभाव है। वे कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं, इसलिए निश्चित है कि उपचुनावों में उनके बिना बीजेपी की स्थिति और खराब हो सकती है।

मीणा के बयान

किरोड़ीलाल मीणा ने इस्तीफे की घोषणा करने से पहले कहा कि आज की राजनीति में उच्च आदर्शों की आवश्यकता है और भ्रष्टाचार व्याप्त है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का उदाहरण देते हुए कहा कि नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देना चाहिए।

यूपी में असंतोष और अंतर्कलह

उत्तर प्रदेश बीजेपी में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जब तक बीजेपी मजबूत स्थिति में थी, असंतोष बाहर नहीं निकल रहा था, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। यूपी में करीब 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं और पार्टी का अंतर्कलह उपचुनावों में हार का कारण बन सकता है।

यूपी में आंतरिक कलह

उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की हार के बाद कई जिलों से ऐसी खबरें आईं हैं कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही है और उन्हें परेशान किया जा रहा है। लखनऊ के हजरतगंज में प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने पुलिस की चेकिंग से परेशान होकर अपनी गाड़ी से बीजेपी का झंडा और प्रवक्ता लिखा बोर्ड हटा दिया था। कानपुर में एक बीजेपी नेता पर मामला दर्ज होने के बाद डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने पुलिस की चेकिंग पर ही सवाल खड़ा कर दिया, यानि कि सीएम योगी आदित्यनाथ के आदेश पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया।

चुनावों में मिली हार के बाद हुई पहली मंत्रिमंडल की बैठक में प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम ने बाहर रहकर यह संकेत दे दिया था कि उन्हें अपनी स्टाइल से राजनीति करनी है। यह नेतृत्व के कमजोर होने और पार्टी की बढ़ती अलोकप्रियता का संकेत है। वेस्ट यूपी में पूर्व विधायक संगीत सोम और पूर्व मंत्री संजीव बालयान ने जमकर पार्टी की आलोचना की।

बिहार में डबल टेंशन

लोकसभा चुनाव नतीजे आए अभी एक महीने भी नहीं हुए कि बिहार एनडीए में सियासी रार छिड़ गई है। पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बीजेपी की अगुवाई करते हुए कहा है कि बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए और एनडीए की सरकार बने। उन्होंने मुख्यमंत्री के सवाल पर कहा कि पार्टी में आयातित माल बर्दाश्त नहीं करेंगे और मुख्यमंत्री को लेकर फैसला केंद्रीय नेतृत्व करेगा।

बिहार में असंतोष

नीतीश कुमार ने कुछ ही महीने पहले महागठबंधन से नाता तोड़ एनडीए में वापसी कर सरकार बनाई थी। लेकिन उनकी सरकार में असंतोष बढ़ रहा है। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा था कि बिहार में बीजेपी की सरकार बनाना उनका लक्ष्य है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी नीतीश कुमार के भरोसे चुनाव जीत सकी है।

पार्टी की कमजोर स्थिति

जब पार्टी कमजोर होती है, तो असंतुष्टों को बोलने का मौका मिल जाता है। उन्हें पता होता है कि ऐसी स्थिति में उन पर कोई आंच नहीं आने वाली है। पार्टी की घटती लोकप्रियता से क्षेत्रीय नेता भी मजबूत होते हैं। बिहार में भी वही डर है। अश्विनी चौबे लोकसभा चुनाव में टिकट काटे जाने से नाराज हैं और पार्टी में रहते हुए गठबंधन की डोर कमजोर करने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं।

निष्कर्ष

किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफा और बीजेपी में बढ़ता असंतोष पार्टी के लिए गंभीर चुनौती है। अगर पार्टी इन संकेतों को समय रहते नहीं समझती और प्रभावी कदम नहीं उठाती, तो उपचुनावों में और आगामी विधानसभा चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। पार्टी को अपने असंतुष्ट नेताओं को मनाने और गुटबाजी को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, तभी वह अपनी खोई हुई लोकप्रियता वापस पा सकेगी।

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