“तकनीकी क्रांति या रोजगार का छलावा? करनाल पॉलिटेक्निक और मारुति सुजुकी के ऐतिहासिक समझौते से छात्रों का भविष्य होगा सुरक्षित या असुरक्षित?”

तकनीकी क्रांति या रोजगार का छलावा? करनाल पॉलिटेक्निक और मारुति सुजुकी के ऐतिहासिक समझौते से छात्रों का भविष्य होगा सुरक्षित या असुरक्षित?
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नीलोखेड़ी, करनाल। तकनीकी शिक्षा और उद्योग के बीच की खाई पाटने के प्रयास में, जीबीएन राजकीय पॉलिटेक्निक नीलोखेड़ी ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। यह पहला मौका है जब किसी हरियाणा के पॉलिटेक्निक संस्थान ने मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड (MSIL) के साथ Memorandum of Understanding (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते का उद्देश्य ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के उभरते ट्रेंड्स और आधुनिक तकनीकों से छात्रों को परिचित कराना है, ताकि वे भविष्य में प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ार में अपनी जगह बना सकें। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह पहल छात्रों को वास्तविक रोजगार दिलाने में कारगर साबित होगी या सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी?Flash

हरियाणा में पहली बार हुआ ऐसा समझौता

प्रदेश में यह पहला मौका है जब किसी सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज और मारुति सुजुकी जैसी दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनी के बीच ऐसा करार हुआ है। इस एमओयू के तहत संस्थान में एक “इंडस्ट्री-रेडी स्किल लैब” स्थापित की जाएगी, जहां छात्रों को अत्याधुनिक ऑटोमोबाइल तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाएगी। इस प्रयोगशाला में छात्रों को उन मशीनों और सॉफ्टवेयर्स के बारे में व्यवहारिक ज्ञान दिया जाएगा, जो वर्तमान में ऑटोमोबाइल उद्योग में इस्तेमाल हो रहे हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के प्रिंसिपल ज्वाला प्रसाद ने की, जबकि मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड की ओर से वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजीव कुमार सिन्हा के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ टीम संस्थान में पहुंची। संजीव सिन्हा ने अपने संबोधन में तकनीकी संस्थानों और उद्योगों के बीच तालमेल की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “अगर छात्र सिर्फ किताबों तक सीमित रहेंगे, तो वे इंडस्ट्री की असल ज़रूरतों को समझ ही नहीं पाएंगे। इसलिए व्यवहारिक प्रशिक्षण ही उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करेगा।”

छात्रों को मिलेगा औद्योगिक प्रशिक्षण, लेकिन क्या रोजगार की गारंटी होगी?

एमएसआईएल के महाप्रबंधक भास्कर गुप्ता ने एक PPT प्रेजेंटेशन के ज़रिए इस एमओयू के उद्देश्यों और लाभों पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस समझौते के तहत छात्रों को कई प्रकार के प्रशिक्षण दिए जाएंगे:

✔️ इंडस्ट्रियल रेडीनेस प्रोग्राम: मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्रों को यह विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें इंडस्ट्री की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।
✔️ रियल-टाइम ऑटोमोबाइल टेक्नोलॉजी: छात्रों को इंजन डायग्नोस्टिक्स, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड व्हीकल्स की तकनीक, 3D प्रिंटिंग और AI-बेस्ड ऑटोमेशन की जानकारी दी जाएगी।
✔️ स्किल डेवलपमेंट लैब: कॉलेज परिसर में ही एक उच्च-स्तरीय लैब बनाई जाएगी, जहां नवीनतम उपकरणों और सिमुलेशन सॉफ्टवेयर्स का उपयोग करके छात्रों को ट्रेनिंग दी जाएगी।

हालांकि, सवाल उठता है कि क्या इस समझौते से छात्रों को प्लेसमेंट की भी गारंटी मिलेगी? इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है।

क्या यह सिर्फ एक दिखावटी पहल है?

इस एमओयू के तहत छात्रों को बेहतर तकनीकी प्रशिक्षण तो मिलेगा, लेकिन इसमें नौकरी की कोई गारंटी नहीं दी गई है। कुछ छात्रों ने इस पर सवाल उठाए हैं कि जब उद्योग में पहले से ही ऑटोमोबाइल सेक्टर में जॉब क्राइसिस बनी हुई है, तो क्या यह प्रशिक्षण वास्तव में फायदेमंद होगा?Flash

हाल ही में Society of Indian Automobile Manufacturers (SIAM) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में नौकरियों की संख्या घट रही है। भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के बढ़ते प्रचलन और ऑटोमेशन के कारण पारंपरिक तकनीकों पर आधारित नौकरियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह प्रशिक्षण छात्रों को भविष्य की इंडस्ट्री के लिए तैयार करेगा, या फिर यह सिर्फ एक सर्टिफिकेट-ओरिएंटेड कोर्स बनकर रह जाएगा?Flash

सरकार और उद्योगों का यह गठजोड़ छात्रों के लिए कितना फायदेमंद?

पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि तकनीकी शिक्षा संस्थानों और कंपनियों के बीच कई एमओयू साइन किए गए हैं, लेकिन उनमें से कई सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए। हरियाणा के कई संस्थानों ने इससे पहले भी विभिन्न कंपनियों के साथ समझौते किए थे, लेकिन उनमें से बहुत कम छात्रों को वास्तविक रोजगार मिल पाया।

इस संदर्भ में मारुति सुजुकी का यह एमओयू कितना प्रभावी साबित होगा, यह देखने वाली बात होगी। संस्थान के प्रिंसिपल ज्वाला प्रसाद ने भरोसा दिलाया कि “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि छात्र सिर्फ ट्रेनिंग ही नहीं लें, बल्कि उन्हें इंडस्ट्री में रोजगार भी मिले। इसके लिए हम मारुति सुजुकी से एक मजबूत प्लेसमेंट पॉलिसी पर भी चर्चा करेंगे।”

छात्रों की प्रतिक्रिया: उम्मीदें और आशंकाएं

इस समझौते के बाद छात्रों में उत्साह और संदेह दोनों देखने को मिल रहे हैं। मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र रोहित वर्मा ने कहा, “अगर हमें यहां पर आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग मिलेगी और इंडस्ट्री में इंटर्नशिप करने का मौका मिलेगा, तो यह हमारे लिए बहुत फायदेमंद होगा।”

वहीं, अनुराग शर्मा नाम के एक अन्य छात्र ने चिंता व्यक्त की, “हमने पहले भी कई एमओयू देखे हैं, लेकिन उनका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। हमें प्लेसमेंट की गारंटी चाहिए, वरना यह समझौता भी सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा।”

क्या कहती है सरकार और उद्योग जगत?

हरियाणा सरकार ने राज्य के पॉलिटेक्निक कॉलेजों को उद्योगों के साथ जोड़ने की योजना बनाई है। सरकार का दावा है कि आने वाले समय में इस तरह के और भी समझौते किए जाएंगे ताकि छात्रों को इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जा सके।

मारुति सुजुकी के अधिकारी संजीव सिन्हा ने कहा, “हमें भरोसा है कि यह एमओयू छात्रों को आत्मनिर्भर बनाएगा और उन्हें ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मौजूदा जरूरतों के अनुरूप तैयार करेगा।”

हालांकि, उद्योग जगत के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ प्रशिक्षण देना ही काफी नहीं है, बल्कि इंडस्ट्री में रोजगार के अवसर भी बढ़ाने होंगे। अगर छात्रों को सिर्फ सर्टिफिकेट देकर छोड़ दिया जाएगा, तो यह पहल अपनी मूल भावना से भटक जाएगी।

निष्कर्ष: अवसर या भ्रम?

करनाल पॉलिटेक्निक और मारुति सुजुकी का यह ऐतिहासिक समझौता तकनीकी शिक्षा को एक नई दिशा दे सकता है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि छात्रों को वास्तव में रोजगार के अवसर मिलते हैं या नहीं।

✔️ पक्ष में: छात्रों को अत्याधुनिक तकनीकों का व्यवहारिक ज्ञान मिलेगा।
विपक्ष में: प्लेसमेंट की कोई गारंटी नहीं दी गई है।

अब देखने वाली बात होगी कि क्या यह समझौता छात्रों के करियर को ऊंचाइयों तक ले जाएगा, या फिर यह सिर्फ एक औपचारिक पहल बनकर रह जाएगा। आने वाले वर्षों में इस समझौते के प्रभावों का मूल्यांकन ही इसकी असली सफलता तय करेगा।

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