पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के खिलाफ ईडी का शिकंजा: औद्योगिक भूखंड आवंटन केस में गहराया विवाद
पंचकूला में 14 औद्योगिक भूखंडों के आवंटन में कथित धांधली का मामला भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में हुड्डा सहित 17 अन्य आरोपियों की नियमित जमानत रद्द करने की याचिका दायर की है।
ईडी का सख्त रुख: हाईकोर्ट में चुनौती
ईडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद मोदगिल ने दलील दी है कि विशेष अदालत ने हुड्डा को जमानत देते हुए गंभीर त्रुटि की। अदालत ने तथ्यों और दस्तावेजों को नज़रअंदाज़ कर यह फैसला सुनाया। ईडी का आरोप है कि हुड्डा प्रभावशाली व्यक्तित्व रखते हैं और गवाहों व सबूतों को प्रभावित कर सकते हैं।
ईडी का कहना है कि विशेष अदालत ने केवल इस आधार पर जमानत दे दी कि हुड्डा जांच में शामिल हुए और उनकी गिरफ्तारी पीएमएलए अधिनियम की धारा 19 के तहत नहीं हुई। यह नजरअंदाजी इस मामले की जटिलता और संवेदनशीलता को कमतर आंकने जैसी है।
गवाहों को प्रभावित करने का आरोप
ईडी की याचिका के अनुसार, जमानत शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा है। हुड्डा के प्रभाव का अंदेशा जताते हुए एजेंसी ने कहा कि उनके द्वारा गवाहों पर दबाव डाला जा सकता है। इससे न केवल न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होगी, बल्कि सरकारी खजाने को हुए नुकसान की भरपाई में भी दिक्कत आएगी।
मामला: पंचकूला के औद्योगिक भूखंड
पंचकूला के 14 औद्योगिक भूखंडों के आवंटन में घोटाले का यह मामला तब सामने आया, जब आरोप लगे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हुड्डा ने अपने कार्यकाल में अयोग्य आवेदकों को भूखंड आवंटित किए।
आवंटन में नियमों की अनदेखी
ईडी के आरोपों के अनुसार, आवेदन प्राप्त होने की अंतिम तिथि के बाद पात्रता मानदंड में बदलाव किया गया। इस बदलाव का फायदा खास लोगों को पहुंचाने के लिए किया गया, जिससे सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ। यह बदलाव भूखंडों के आवंटन के पहले से तय नियमों के खिलाफ था।
अनुचित लाभ का मामला
हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने चुनिंदा आवेदकों को अनुचित लाभ देने के लिए नियमों की अनदेखी की। जांच एजेंसी का कहना है कि यह साजिश सरकारी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को ठेस पहुंचाने और जनहित के खिलाफ थी।
विशेष अदालत का निर्णय और ईडी की आपत्ति
मार्च 2021 में, पंचकूला की ईडी की विशेष अदालत ने हुड्डा और 17 अन्य को जमानत दी थी। इस फैसले को चुनौती देते हुए ईडी ने हाईकोर्ट से इस पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। ईडी ने अपनी याचिका में विशेष अदालत के फैसले को “त्रुटिपूर्ण” करार दिया और कहा कि इसे तथ्यों के संपूर्ण विश्लेषण के बिना दिया गया।
जमानत के लिए बनी दलील
विशेष अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि जांच में सहयोग देने के आधार पर जमानत दी जा रही है। हालांकि, ईडी का मानना है कि ऐसा करना नियमों के गंभीर उल्लंघन जैसा है।
जांच और संभावित प्रभाव
ईडी की इस कार्रवाई ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक करियर पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जांच एजेंसी का कहना है कि सरकारी नियमों का पालन नहीं होने से यह केस एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
भविष्य में क्या हो सकता है?
30 जनवरी को इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में होनी है। अगर ईडी अपनी दलीलों के आधार पर अदालत को संतुष्ट करती है, तो यह जमानत रद्द हो सकती है। इससे मामले में अभियुक्तों पर दबाव बढ़ सकता है।
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जनता और राजनीतिक प्रतिक्रिया
यह मुद्दा हरियाणा की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। विरोधियों ने इसे सरकार के कार्यकाल की “पारदर्शिता और नैतिकता” पर सवाल उठाने का मौका बताया है। वहीं, हुड्डा के समर्थक इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं।
सारांश: पारदर्शिता की परख या राजनीतिक शिकार?
पंचकूला औद्योगिक भूखंड आवंटन मामला केवल भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं, बल्कि सरकारी प्रशासनिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता का प्रश्न है। क्या यह केस सुशासन की नई मिसाल बनेगा, या राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा? 30 जनवरी की सुनवाई के परिणाम इस प्रश्न का उत्तर तय करेंगे।