प्रवासी से उद्यमी बनने की प्रेरणादायक कहानी
Sanjay Sharma करनाल। 13 साल पहले ऑस्ट्रेलिया में पांच लाख रुपये महीने की विदेशी नौकरी, आरामदायक जीवन, और सुनहरा भविष्य – लेकिन प्रवीन ग्रेवाल की आत्मा को चैन नहीं था। उनकी जड़ें उन्हें लगातार खींच रही थीं। अंततः उन्होंने 60 लाख रुपये सालाना के आकर्षक पैकेज को ठुकराकर वतन लौटने का फैसला किया। यह एक जोखिम भरा निर्णय था, लेकिन अब वही प्रवीन ग्रेवाल अपने बेकरी बिजनेस से लोगों को रोजगार दे रहे हैं और उनके उत्पाद हरियाणा से दिल्ली-एनसीआर तक धूम मचा रहे हैं। वे अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कदम रखने की तैयारी कर रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया में सुनहरा करियर, लेकिन मन अपने देश में
प्रवीन ग्रेवाल कुरुक्षेत्र के मोहन नगर के रहने वाले हैं। वे मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं और हमेशा कुछ बड़ा करने का सपना देखते थे। 2007 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जाने का फैसला किया, जहां उन्होंने दो साल तक बेकरी मैनेजमेंट की पढ़ाई की और डिप्लोमा हासिल किया। पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने वहां एक प्रतिष्ठित बेकरी में विदेशी नौकरी शुरू की और जल्द ही उनकी तनख्वाह पाँच लाख रुपये प्रति माह हो गई।
हालांकि, प्रवीन का मन विदेशी नौकरी में नहीं लगा। उनका सपना अपने देश में कुछ बड़ा करने का था। उन्होंने 2012 में ऑस्ट्रेलिया की नौकरी छोड़ भारत लौटने का साहसिक निर्णय लिया। यह फैसला आसान नहीं था – कई लोगों ने कहा कि वे गलती कर रहे हैं, लेकिन प्रवीन अपने सपने को लेकर अडिग थे।
बेकरी स्टार्टअप की शुरुआत: छोटे कदम, बड़ी सफलता
भारत लौटने के बाद प्रवीन ने अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग करते हुए बेकरी उद्योग में कदम रखा। उन्होंने ‘बेकर सोसायटी’ नामक अपना पहला आउटलेट खोला।
उनकी बेकरी की खासियत थी – प्रीमियम गुणवत्ता, बेहतरीन स्वाद, और ग्राहकों की पसंद को समझकर नए उत्पादों की पेशकश करना। उनका पहला आउटलेट सफल हुआ और इसके बाद उन्होंने 2018 में रोहतक में दूसरा आउटलेट खोला। धीरे-धीरे उनके उत्पादों की मांग बढ़ने लगी और उन्होंने दिल्ली-एनसीआर में भी सप्लाई शुरू कर दी।
चुनौतियों से भरा सफर: क्या विदेश लौटने का ख्याल आया?
प्रवीन के लिए यह सफर बिल्कुल आसान नहीं था। उन्हें शुरुआत में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा –
- वित्तीय समस्या: विदेश से लौटने के बाद उनके पास सीमित पूंजी थी। स्टार्टअप को बढ़ाने के लिए उन्हें निवेश की जरूरत थी।
- प्रतिस्पर्धा: भारत में बेकरी बाजार पहले से ही बड़ा था। नामी ब्रांड्स के बीच खुद को स्थापित करना आसान नहीं था।
- ग्राहकों की पसंद: भारतीय ग्राहकों की स्वाद प्राथमिकताएँ ऑस्ट्रेलियाई बाजार से अलग थीं। उन्हें नए उत्पाद तैयार करने में समय लगा।
इतनी परेशानियों के बावजूद प्रवीन ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी रणनीतियों को बदला, ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रखा और धीरे-धीरे अपने ब्रांड को स्थापित किया।
फ्रेंचाइजी मॉडल से नए अवसर: युवाओं को बना रहे उद्यमी
अब, जब उनका व्यवसाय सफलता की राह पर है, प्रवीन इसे और आगे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। वे अपने ब्रांड की फ्रेंचाइजी दे रहे हैं, जिससे नए उद्यमियों को भी अवसर मिल रहा है। उनके आउटलेट्स अब पूरे हरियाणा में फैलने लगे हैं और जल्द ही वे अन्य राज्यों में भी विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।
उनका मानना है कि अगर सही दिशा में मेहनत की जाए, तो भारत में भी शानदार कमाई की जा सकती है। उनका यह कदम न सिर्फ उन्हें सफलता दिला रहा है, बल्कि कई युवाओं को भी रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।
अब विदेशी बाजार की ओर: निर्यात की तैयारी
प्रवीन के बेकरी उत्पादों को ग्राहकों से जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला है। अब वे भारत के बाहर भी अपने उत्पाद भेजने की योजना बना रहे हैं। वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रवेश करने के लिए निर्यात रणनीति पर काम कर रहे हैं।
अगर सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहा, तो जल्द ही उनके कुकीज और केक विदेशों में भी बिकते नजर आएंगे। यह एक बड़ी उपलब्धि होगी – एक ऐसा व्यक्ति जिसने विदेशी नौकरी छोड़ी, अब उसी देश को अपने उत्पाद निर्यात करेगा।
सफलता का मंत्र: युवा उद्यमियों के लिए प्रेरणा
प्रवीन ग्रेवाल की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का सपना देखते हैं। उनकी सफलता का मुख्य मंत्र है –
- जोखिम उठाने की हिम्मत: अगर वे 60 लाख की नौकरी छोड़ने का साहस नहीं करते, तो आज वे इस मुकाम तक नहीं पहुंचते।
- गुणवत्ता से समझौता नहीं: उन्होंने हमेशा अपने उत्पादों की गुणवत्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
- नई चीजें सीखना और अपनाना: बाजार की बदलती जरूरतों को समझना और नए उत्पाद बनाना उनकी सफलता की कुंजी है।
निष्कर्ष: घर वापसी का सबसे अच्छा फैसला!
प्रवीन ग्रेवाल का यह सफर दिखाता है कि विदेश नौकरी ही सफलता की गारंटी नहीं होती। अगर सही रणनीति और मेहनत से काम किया जाए, तो अपने देश में भी बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है।
वे आज न सिर्फ खुद सफल हैं, बल्कि दूसरों को भी सफलता के अवसर दे रहे हैं। उनका मानना है कि “जो सुख अपने घर की रोटी में है, वो विदेश की नौकरी में नहीं।”