राहुल गांधी को 1.40 करोड़, दिग्विजय सिंह को 50 लाख: कांग्रेस ने चुनावी फंड का खुलासा किया

राहुल गांधी को 1.40 करोड़, दिग्विजय सिंह को 50 लाख: कांग्रेस ने चुनावी फंड का खुलासा किया
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कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में चुनाव आयोग को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को दी गई धनराशि का ब्यौरा दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए भारी भरकम राशि दी थी। राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेताओं को इस फंड में से सबसे बड़ी हिस्सेदारी मिली है।

कांग्रेस के राहुल गांधी को मिले 1.40 करोड़ रुपये: वायनाड और रायबरेली से चुनाव लड़ा

राहुल गांधी को कांग्रेस ने चुनाव प्रचार और अन्य गतिविधियों के लिए 1.40 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। यह राशि उन्हें दो अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ने के लिए दी गई थी। पार्टी ने राहुल को वायनाड और रायबरेली, दोनों सीटों से 70-70 लाख रुपये दिए थे। राहुल गांधी ने दोनों सीटों से जीत हासिल की, लेकिन बाद में उन्होंने रायबरेली की सीट को चुना और वायनाड की सीट छोड़ दी। यह फैसला उनके राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

कांग्रेस के विक्रमादित्य सिंह को मिले सबसे अधिक 87 लाख रुपये

पार्टी के फंड वितरण में विक्रमादित्य सिंह को सबसे अधिक 87 लाख रुपये दिए गए। विक्रमादित्य हिमाचल प्रदेश के मंडी सीट से चुनाव लड़े थे, जहां उनका मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार कंगना रनौत से था। हालांकि, इस मुकाबले में वे हार गए। पार्टी के इस निर्णय ने चर्चाओं को जन्म दिया, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि पार्टी ने अपने फंड का सही तरीके से वितरण नहीं किया।

कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं को भी मिला था बड़ा फंड

कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं को भी पार्टी फंड से महत्वपूर्ण राशि दी गई थी। 70 लाख रुपये पाने वाले अन्य नेताओं में किशोरी लाल शर्मा शामिल हैं, जिन्होंने अमेठी से बीजेपी की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी को हराया था। इसके अलावा, केसी वेणुगोपाल (केरल के अलपुझा से), मणिकम टैगोर (तमिलनाडु के विरुधुनगर से), राधाकृष्ण (कर्नाटक के गुलबर्गा से), और विजय इंदर सिंगला (पंजाब के आनंदपुर साहिब से) को भी 70-70 लाख रुपये दिए गए थे।

कांग्रेस के सीनियर नेताओं के लिए कम फंड: आनंद शर्मा और दिग्विजय सिंह को मिले 46 और 50 लाख रुपये

कांग्रेस के सीनियर नेताओं आनंद शर्मा और दिग्विजय सिंह को क्रमशः 46 लाख और 50 लाख रुपये दिए गए। दोनों नेता अपने-अपने चुनाव हार गए थे। इस निर्णय ने पार्टी के भीतर ही विवादों को जन्म दिया है, क्योंकि कुछ नेताओं का मानना है कि इन वरिष्ठ नेताओं को अधिक फंड मिलना चाहिए था।

चुनाव खर्च की सीमा में बदलाव: बड़ी और छोटी राज्यों के लिए अलग-अलग नियम

दरअसल, चुनाव प्रचार में उम्मीदवार के खर्च की एक सीमा होती है, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। जनवरी 2022 में चुनाव आयोग की सिफारिश पर सरकार ने लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा 70 लाख रुपये से बढ़ाकर 95 लाख रुपये और विधानसभा चुनावों के लिए 28 लाख रुपये से बढ़ाकर 40 लाख रुपये कर दी थी। यह सीमा बड़े और छोटे राज्यों के लिए अलग-अलग निर्धारित की गई है।

चुनावी खर्च की सीमा बढ़ाने के पीछे की वजह

चुनाव आयोग के अनुसार, बढ़ती महंगाई और चुनावी खर्च में लगातार वृद्धि को देखते हुए यह निर्णय लिया गया था। इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों के उम्मीदवार अपने क्षेत्रों में अधिक प्रभावी ढंग से चुनाव प्रचार कर सकते हैं। इसके अलावा, यह फैसला चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

लोकसभा चुनाव 2024: कांग्रेस का प्रदर्शन

2024 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहे। पार्टी ने 99 सीटों पर जीत हासिल की, जिसमें से दो सीटें राहुल गांधी ने जीती थीं। पार्टी ने पिछले महीने चुनाव आयोग को लोकसभा चुनाव और अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा, और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए ‘आंशिक चुनाव व्यय विवरण’ सौंपा था।

इस विवरण में पार्टी ने उन सभी उम्मीदवारों को दी गई ‘एकमुश्त राशि’ का विवरण दिया था, जिन्हें पार्टी ने अपने फंड से चुनाव लड़ने के लिए आर्थिक सहायता दी थी।

कांग्रेस के फंड वितरण पर उठे सवाल

कांग्रेस के फंड वितरण को लेकर राजनीतिक हलकों में कई सवाल उठ रहे हैं। कई विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी ने अपने संसाधनों का ठीक से उपयोग नहीं किया। राहुल गांधी और विक्रमादित्य सिंह को भारी रकम देने के बावजूद कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं को अपेक्षाकृत कम राशि दी गई। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने संसाधनों का सही इस्तेमाल किया?

क्या फंड की कमी रही हार का कारण?

कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि पार्टी की हार के पीछे फंड की कमी एक बड़ा कारण हो सकता है। कई प्रमुख उम्मीदवारों को कम फंड मिलने से वे चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत नहीं लगा सके। इसके अलावा, पार्टी ने कई जगहों पर अपने उम्मीदवारों को अंतिम समय में फंड जारी किया, जिससे उनके प्रचार अभियान में भी बाधा आई।

भविष्य की रणनीति पर होगा पुनर्विचार

चुनाव में मिली हार के बाद, कांग्रेस को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। पार्टी के फंड वितरण की नीति में सुधार की जरूरत है ताकि भविष्य में सभी उम्मीदवारों को समान रूप से फंड मिल सके। इसके साथ ही, पार्टी को अपने अभियान को और भी सशक्त बनाने के लिए नए तरीकों और रणनीतियों को अपनाने पर विचार करना होगा।

चुनावी फंडिंग: पारदर्शिता और जिम्मेदारी का सवाल

कांग्रेस के फंड वितरण की रिपोर्ट ने चुनावी फंडिंग की पारदर्शिता और जिम्मेदारी को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके द्वारा दिया गया हर एक पैसा सही तरीके से उपयोग हो और जनता के पैसे का दुरुपयोग न हो। चुनाव आयोग को भी इस दिशा में सख्त नियम बनाने की जरूरत है ताकि भविष्य में कोई भी राजनीतिक दल फंड का गलत इस्तेमाल न कर सके।

कांग्रेस के लिए आगे की राह

कांग्रेस के सामने अब एक नई चुनौती है कि वह अपने फंड वितरण को कैसे सुधार सकती है और अपने नेताओं के बीच संतुलन कैसे बना सकती है। पार्टी को अपने नेताओं को अधिक सशक्त बनाने और चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए नई रणनीतियों पर विचार करना होगा।

यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आगामी चुनावों में किस तरह से अपनी रणनीति में बदलाव करती है और अपने फंड का सही इस्तेमाल करती है ताकि वह भविष्य में और भी मजबूत बन सके।

निष्कर्ष

कांग्रेस द्वारा चुनाव आयोग को सौंपी गई रिपोर्ट ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। पार्टी के फंड वितरण की रणनीति और चुनावी खर्च पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पार्टी को अब इस पर ध्यान देना होगा कि वह कैसे अपने फंड का सही इस्तेमाल कर सके और अपने नेताओं को चुनावी मैदान में सशक्त बना सके।

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