तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। कमर में दर्द के बावजूद उन्होंने रैलियों का रिकॉर्ड बनाया। हालांकि, बीजेपी को पूरे उत्तर भारत में जितनी चोट लगी है, वैसी बिहार में नहीं लग पाई। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को मजबूरी है कि नतीजों के बाद कोई भी क्रेडिट लेते हैं तो INDIA गठबंधन के नाम पर ही लेते हैं। बिहार में उनके पास बताने को कुछ खास नहीं है।
वोट शेयर बढ़ा, लेकिन सीटें नहीं
2019 के संसदीय चुनाव में आरजेडी का वोट शेयर 15.36% था, जो 2024 में बढ़कर 22.14% हो गया। यानी, कुल 6.78% की बढ़ोतरी हुई है। लोकसभा चुनाव 2024 में तेजस्वी यादव अपने राष्ट्रीय जनता दल को सीटें तो नहीं दिला पाए, लेकिन वोट शेयर बढ़ाने में सफल रहे। हालांकि, 2019 की तुलना में यह फायदा ही है, क्योंकि 2019 में आरजेडी जीरो पर थी।
विधानसभा चुनाव का वोट शेयर
2020 और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी का वोट शेयर भी बढ़ा था। 2020 में आरजेडी का वोट शेयर 23.11% था, जो 2015 के मुकाबले 4.79% ज्यादा था। अगर 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी यही पैटर्न रहा तो आरजेडी का वोट शेयर 4-6% बढ़ सकता है। हालांकि, वोट शेयर की बढ़ोतरी सीटें मिलने की गारंटी नहीं होती।
पड़ोस में अखिलेश यादव की बेहतरीन स्ट्राइक रेट
तेजस्वी यादव ने बिहार की 40 में से 23 लोकसभा सीटों पर आरजेडी उम्मीदवार उतारे थे, जबकि कांग्रेस को 9 सीटें मिली थीं। आरजेडी महज 4, जबकि कांग्रेस 3 सीटें जीत पाई। स्ट्राइक रेट के हिसाब से कांग्रेस का प्रदर्शन आरजेडी से बेहतर रहा।
मुस्लिम वोटों को लेकर आरजेडी और कांग्रेस में प्रतियोगिता हो सकती है, लेकिन तेजस्वी यादव के प्रदर्शन की तुलना अखिलेश यादव से बेहतर होगी। अखिलेश यादव ने यूपी में 62 सीटें अपने पास रखी थीं और कांग्रेस को 17 सीटें दी थीं। समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीत लीं और कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं।
नीतीश कुमार पर निर्भर आरजेडी का प्लान
लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू का प्रदर्शन 2019 जैसा नहीं रहा। 2019 में जेडीयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार 16 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटें ही जीतीं। बिहार में बीजेपी के बराबर सीटें जीतने के साथ ही नीतीश कुमार किंगमेकर बन गए हैं, क्योंकि बीजेपी 2024 में बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटें भी नहीं जीत पाई।
जेडीयू का घटता वोट शेयर
2019 में जेडीयू का वोट शेयर 21.81% था, जो इस बार 18.52% ही रह गया। अगर ऐसी ही गिरावट 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी रही, तो यह तेजस्वी यादव के लिए फायदे की बात हो सकती है। लेकिन, यह भरोसेमंद पैमाना नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 1% से भी कम वोटों के अंतर से पिछड़ जाने के कारण हिमाचल प्रदेश में सत्ता गंवा चुकी बीजेपी 2024 में लोकसभा की सभी चार सीटें फिर से जीत गई।
तेजस्वी यादव के सामने चुनौतियाँ
लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बड़ा फर्क होता है, लिहाजा दोनों की आपस में तुलना नहीं हो सकती। तेजस्वी यादव के सामने अगला लक्ष्य 2025 का विधानसभा चुनाव है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी बहुमत से भले ही चूक गई हो, लेकिन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था और सीटों के मामले में नंबर 1 पार्टी बनी थी।
नया प्लान या पुरानी राह?
लोकसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने बिहार का दौरा किया और चुनाव कैंपेन के दौरान भी कमर में बेल्ट बांधे और व्हीलचेयर पर दिखे। बिहार में नौकरियाँ देने और जातीय जनगणना कराने का क्रेडिट लेने की भी पूरी कोशिश की, लेकिन उनका कोई चुनावी फायदा नजर नहीं आया।
कांग्रेस का साथ नाकाफी
लोकसभा चुनाव 2024 में लालू परिवार के कई रिजर्वेशन आरजेडी के प्रदर्शन में आड़े आए। तेजस्वी यादव ने कई वीडियो रिलीज किए, जिसमें वह कभी मछली तो कभी कुछ और खाते नजर आए। मुकेश सहनी न तो अपने हिस्से की तीन सीटें जीत पाए, न ही अपने प्रभाव वाले इलाके में INDIA गठबंधन के लिए मददगार साबित हुए।
पप्पू यादव और कन्हैया कुमार की दीवार
कांग्रेस कन्हैया कुमार को बेगूसराय से चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन लालू यादव और तेजस्वी यादव की जिद के कारण कांग्रेस को दिल्ली से उम्मीदवार बनाना पड़ा। पूर्णिया में पप्पू यादव की जीत ने नई मिसाल कायम की। तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन पप्पू यादव का बाल भी बांका नहीं कर पाए।
निष्कर्ष
अगर तेजस्वी यादव को वास्तव में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना है, तो उन्हें बड़ा दिल दिखाना होगा। वरना, नीतीश कुमार का साथ मिलने के अलावा कोई और चारा नहीं बनता। हालांकि, नीतीश कुमार जिस तरह दिल्ली में बीजेपी के साथ खड़े हैं, लगता नहीं कि वह इतनी जल्दी पलटी मारने वाले हैं।