पॉली हाउस लगाने के बहाने 64 लाख रुपये की धोखाधड़ी: किसान ने उठाई न्याय की आवाज

पॉली हाउस लगाने के बहाने 64 लाख रुपये की धोखाधड़ी: किसान ने उठाई न्याय की आवाज
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कर्नाल/इंद्री:


कर्नाल जिले के इंद्री क्षेत्र में एक किसान के साथ पॉली हाउस लगाने के नाम पर धोखाधड़ी का एक बड़ा मामला सामने आया है। आरोप है कि कुछ ठगों ने किसान को लोन दिलवाकर उसे सब्सिडी का लालच दिया और फिर उसके नाम पर लोन लेकर लाखों रुपये की धोखाधड़ी कर डाली। इस मामले में आरोपियों ने मिलकर किसान की जमीन पर लोन करवा लिया और उस पर सब्सिडी का झांसा देते हुए, धीरे-धीरे उसकी पूरी ज़मीन की कीमत और बैंक खाते से 64 लाख रुपये की धोखाधड़ी कर डाली।

कैसे हुआ धोखाधड़ी का खेल?


यह कहानी इंद्री के एक छोटे से गांव बुटान खेड़ी के किसान सुभाष सिंह की है। उन्होंने हाल ही में अपने साथ हुई धोखाधड़ी का खुलासा किया। सुभाष सिंह के अनुसार, लगभग छह साल पहले, इंद्री में तीन लोग, अजय, विजय और अमित कुमार उनके पास पहुंचे और उन्हें बताया कि वे नेट शैड पॉली हाउस लगाते हैं। इन लोगों ने किसान को एनबीएच (राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड) योजना के तहत सब्सिडी का लालच दिया, जिसमें उनका कहना था कि किसान फूलों की खेती कर सकता है और दिल्ली के पास होने के कारण इन फूलों की बिक्री भी आसानी से हो सकती है।

इन्हीं आरोपियों ने सुभाष सिंह को यह आश्वासन दिया कि इस योजना के तहत लाखों रुपये की आय हो सकती है और उन्हें इसके लिए बैंक से लोन दिलवाने की बात भी की। फिर उन्होंने सुभाष सिंह को पंजाब नेशनल बैंक (PNB) की इंद्री शाखा के पूर्व प्रबंधक बलदेव राज से मिलवाया, जिन्होंने खुद को गारंटर बताते हुए इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की बात की और लोन दिलवाने का वादा किया।

बैंक से लोन और उसके बाद की योजना


इसके बाद, आरोपियों ने सुभाष सिंह के नाम पर पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में खाता खुलवाया और 39,16,600 रुपये का लोन स्वीकृत करा दिया। साथ ही, किसान को 6.73 लाख रुपये का केसीसी (कृषि कर्ज) भी दिलवाया गया। बैंक प्रबंधक बलदेव राज ने इस लोन को पूरा करने के लिए सुभाष सिंह की गारंटी भी दी और योजना के तहत कई अन्य दस्तावेजों पर साइन करवा लिए। जून 2016 में आरोपियों ने लगभग 31.86 लाख रुपये की राशि विस्ता ग्रीन टेक कंपनी को ट्रांसफर कर दी, जबकि 5.39 लाख रुपये आरोपियों के खाते में चले गए, जो प्रोजेक्ट के लिए थे।

इसके बाद, 19.80 लाख रुपये और 6.60 लाख रुपये की रकम मार्डन एग्रीकल्चर नामक कंपनी को दी गई। इसी के साथ सुभाष सिंह की जमीन पर नेट हाउस लगाया गया, और उनकी सारी ज़मीन पर यह धोखाधड़ी का खेल चल रहा था।

बैंक से मिली फोन कॉल ने बढ़ाई परेशानी


अब, छह साल बाद, सुभाष सिंह के पास बैंक से फोन आया और उन्हें बताया गया कि उनके लोन खाते में किस्तें जमा करनी हैं। इस कॉल ने सुभाष सिंह को चौंका दिया। जब उन्होंने फिर से इन आरोपियों से संपर्क किया और सब्सिडी के बारे में जानकारी ली, तो उन्होंने उन्हें बताया कि अगर अगली किश्त नहीं भरी तो उनका खाता एनपीए (Non-Performing Asset) हो जाएगा।

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एनएचबी की जांच से हुआ बड़ा खुलासा


सुभाष सिंह ने इस पूरे मामले में और जानकारी जुटाने के लिए एनएचबी के गुरुग्राम कार्यालय में संपर्क किया, जहां यह पता चला कि उनका सत्यापन कभी भी नहीं हुआ था। यानी आरोपियों ने पूरी तरह से किसान को धोखा दिया और उसकी बिना जानकारी के उसकी जमीन पर लोन ले लिया।

एनएचबी से जांच में यह भी सामने आया कि उनके नाम पर लोन लिया गया था, लेकिन इसका कोई भी रिवर्स सत्यापन या चेकिंग प्रक्रिया नहीं हुई थी। साथ ही, उन पर 19.18 लाख रुपये की किश्तें जमा करवाई गईं, जो पूरी तरह से धोखाधड़ी के रूप में निकलीं।

किसान की आवाज़


सुभाष सिंह अब न्याय की उम्मीद में हैं। उन्होंने इस मामले को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है और आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि उन्होंने केवल एक छोटे से व्यापार की उम्मीद में इन लोगों की बातों में आकर लोन लिया था, लेकिन अंत में वह उनके लिए एक बड़े धोखाधड़ी के रूप में सामने आया।

सुभाष सिंह की यह कहानी उन लाखों किसानों के लिए एक चेतावनी है, जो बैंकों और योजनाओं के नाम पर ठगों का शिकार हो जाते हैं। इस तरह के मामलों में सरकार और संबंधित विभागों को और अधिक सख्ती से जांच करने की आवश्यकता है, ताकि कोई भी किसान धोखाधड़ी का शिकार न हो।

पुलिस और बैंक की भूमिका पर सवाल


सवाल यह भी उठता है कि जब यह धोखाधड़ी इतनी बड़े पैमाने पर हुई, तो पुलिस और बैंक अधिकारियों ने इसे पहले क्यों नहीं रोका? क्या बैंक के अधिकारियों और संबंधित विभागों ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि लोन देने से पहले सारी प्रक्रियाएं सही ढंग से पूरी की जाएं? इन सभी सवालों का जवाब केवल जांच और सख्त कानूनी कदमों के बाद ही मिल पाएगा।

निष्कर्ष:


सुभाष सिंह के मामले से यह स्पष्ट होता है कि कैसे कुछ लोग किसान के अच्छे भविष्य की उम्मीदों का फायदा उठाकर उन्हें धोखाधड़ी के जाल में फंसा सकते हैं। इस मामले में सच्चाई सामने आने से उम्मीद है कि अन्य किसान भी सतर्क रहेंगे और इस तरह के धोखाधड़ी के मामलों से बचेंगे। साथ ही, इसे एक बड़ा उदाहरण माना जा सकता है कि किस तरह से प्रोजेक्ट के नाम पर ठगी की जा सकती है और कैसे सरकार और बैंक को इन मामलों में पारदर्शिता और सख्ती से काम करना चाहिए।

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